लेखनी प्रतियोगिता -05-May-2022 मैं चली मैं चली बाबुल का अंगना छोड़ कर पिया की दहेली चली
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
शीर्षक-मैं चली मैं चली
बाबुल का अंगना छोड़ कर
पिया की दहेली चली
(विदाई गीत)
(यह गीत एक लड़की सोलह सिंगार करके अपने बाबुल का घर छोड़ कर विदा हो रही है और उसकी सखी उसे कह रही है कि अब तेरे श्रंगार तेरे पति के नाम हो गया है, इस गीत में उसी का विवरण किया गया है।)
मैं चली मैं चली ,
बाबुल का अंगना छोड़कर,
पिया की दहेली चली।
आज शर्मा से वर्मा बन गई,
"ओ सखी"
तेरा नाम भी पिया का हो चला।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज मैंने है मेहंदी रचाई,
"ओ सखी"
तेरी मेहंदी भी पिया के नाम हो चली।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज मैंने है हल्दी लगाई,
"ओ सखी"
तेरी हल्दी पिया के नाम हो चली।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज मांग में सिंदूर भरी,
"ओ सखी"
तेरा सिंदूर पिया के नाम हो चला।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज माथे पर बिंदिया सजाई,
"ओ सखी"
तेरी बिंदिया पिया के नाम हो चली।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज मैंने है मंगलसूत्र पहना,
"ओ सखी"
तेरा मंगलसूत्र भी पिया के नाम हो चला।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर
पिया की दहेली चली
आज मैंने है चूड़ी पहनी,
"ओ सखी"
तेरी चूड़ी पिया के नाम हो चली।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
आज मैंने है पायल पहनी,
"ओ सखी"
तेरी पायल पिया के नाम हो चली।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
डोली में बैठकर पिया की दहेली चली,
आज पिया की दहेली, मैं आई,
मिला मुझे सदा सुहागन होने का आशीष।
"ओ सखी"
आशीष भी तेरे पिया के नाम हो चला।
"ओ सखी"
सोलह श्रृंगार तेरे पिया के नाम हो चला।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
ओ सखी तू हमेशा खुश रहे,
तेरे चेहरे पर हमेशा हंसी बनी रहे,
तू रहना हमेशा साथ रे,
करती हूं दुआ में तेरी।
मैं चली मैं चली,
बाबुल का अंगना छोड़ कर,
पिया की दहेली चली।
Reyaan
06-May-2022 11:34 AM
👌👏
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Shrishti pandey
06-May-2022 10:19 AM
Very nice
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Abhinav ji
06-May-2022 06:45 AM
Nice👍
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